गागरोन का किला – झालावाड़ | यह किला डोड परमारों (बीजलदेव) द्वारा 11वीं सदी में निर्मित है। बीजलदेव से देवनसिंह खिंची उर्फ धारू(खींची राजवंश केसंस्थापक) ने इसे छीना व इसका नाम गागरोन रखा।
गागरौन दुर्ग | Gagron Fort ” औदक दुर्ग/जल दुर्ग- यह दुर्ग आहु व कालीसिंध नदियों के संगम पर (यह स्थान स्थानीय भाषा में ‘सामेल’ कहा जाता है) बना है। राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है, जो बिना किसी नींव के कठोर चट्टान पर खड़ा है। इस किले का कुल क्षेत्रफल 23 हैक्टेयर है। (स्रोत Unesco Nomination dossier for hill forts of Rajasthan)
गागरौन दुर्ग | Gagron Fort के उपनाम – गर्गराटपुर/डोडगढ़/धूलरगढ़
नोट- गागरौन दुर्ग | Gagron Fort अरावली पर्वतमाला पर नहीं है, बल्कि विध्याचल पर्वतमाला की चट्टान पर अवस्थित है।
- गर्गराटपुर: – यहाँ भगवान कृष्ण के पुरोहित गर्गाचारी की साधना स्थली थी, उनके नाम से गर्गराटपुर कहा जाता है।
- जालिम कोट: – कोटा के झाला जालिमसिंह (सेनापति) द्वारा निर्मित विशाल परकोटा जालिमकोट कहलाता है।
- पाषाणकालीन उपकरणों हेतु गागरोन दुर्ग प्रसिद्ध है।
मीठेशाह की दरगाह खींची शासक जैत्रसिंह के समय अलाउद्दीन ने असफल आक्रमण किया था, तब जैत्रसिंह के समय खुरासन के प्रसिद्ध सूफी संत हम्मीदुदीन चिश्ती (मीठेशाह) यहाँ आये। यहीं पर उनकी मृत्यु हो गई, उनकी मजार पर औरंगजेब द्वारा निर्मित ऐतिहासिक दरगाह यहाँ स्थित है।
- इसमें जौहर कुंड बना है।
- सूरजपोल, गणेशपोल व भैरवपोल नामक प्रवेश द्वार हैं।
- यहाँ मधुसूदन मंदिर बना है।
- इसमें कोटा राज्य की टकसाल संचालित होती थी।
- इसमें बुलंद दरवाजा औरंगजेब ने बनवाया था।
- ढकुली- किले में शत्रुओं पर पत्थरों से वर्षा करने वाला यंत्र स्थित है।
- अर्रादा ज्वलनशील पदार्थ फेंकने का यंत्र भी है।
- गीध कराई – किले का सबसे ऊँचा भाग, जहाँ से मृत्युदंड सजा प्राप्त व्यक्तियों को फेंका जाता था।
“पीपाराव– गागरोन के खींची शासक प्रतापसिंह का जन्म इसी किले में हुआ था (जैत्रसिंह की तीन पीढ़ी बाद), इन्होंने भक्ति मार्ग अपनाया। ये फिरोजशाह तुगलक के समकालीन थे। यहीं पर नदी के किनारे संत पीपा की छतरी बनी है। यहीं पर रामानंद की छतरी बनी है।”
गागरौन दुर्ग के साके:-
गागरौन दुर्ग | Gagron Fort में दो साके हुये हैं-
गागरौन दुर्ग | Gagron Fort का प्रथम साका :- 1423 ई. :-
मांडू शासक होशंगशाह व गागरोन शासक अचलदास खींची के मध्य युद्ध हुआ।
अचलदास खींची (महाराणा मोकल का दामाद था) की रानी लाला/लीला मेवाड़ी (कुम्भा की बहन) के नेतृत्त्व में जौहर हुआ। अचलदास ने अपने वंश की रक्षा हेतु अपने बड़े पुत्र पाल्हणसी को बाहर भेज दिया था।
इस साके का वर्णन अचलदास खींची री वचनिका (डिंगल भाषा में) में शिवदास गाडण ने किया है।
गागरौन दुर्ग | Gagron Fort का द्वितीय साका :-1444 ई. :-
आक्रमण मांडू शासक महमूद खिलजी प्रथम का था।
यहाँ के शासक पाल्हणसी (अचलदास का पुत्र) थे। विजय के बाद महमूद खिलजी ने इस किले में एक कोट का निर्माण करवा इस दुर्ग का नाम मुस्तफाबाद रखा। कुम्भा द्वारा सहायता के लिए भेजा गया दाहिरा/धीरा नाम का सेनापति भी इस युद्ध में मारा गया। इस युद्ध का वर्णन मुआसिरे महमूद शाही में किया गया है।
- गागरौन दुर्ग | Gagron Fort होशंगशाह, महमूद खिलजी प्रथम, बहादुरशाह व अकबर के अधिकार में रहा है।
- अकबर ने इस किले को बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ को सौंपा था।
- जहाँगीर के समय राव रतन हाड़ा (बूँदी) को सौंपा था।
- 1631 में शाहजहाँ के समय कोटा राज्य की स्थापना के समय इसे माधोसिंह को दे दिया गया।
21 जून, 2013 को इस किले को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। इस किले पर 2018 में 5 रुपये का डाक टिकट जारी किया गया।
“बेलि क्रिसन रूकमणी री- पृथ्वीराज राठौड़ (चीकानेर के कल्याणमल का पुत्र) ने अपनी इस पुस्तक की रचना इसी किले में की थी।
रचना:- लगभग 1577 ई.। दूरसा आढ़ा ने इसे पाँचवां वेद तथा 19 वाँ पुराण की संज्ञा दी।
इस रचना को पढ़कर कर्नल टॉड ने कहा कि शायद महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार की थी।”
झालावाड का इतिहास :-
1838 ई. में झाला मदनसिंह के समय अंग्रेजों द्वारा बसायी गई नवीन रियासत
उपनाम:– राजस्थान का नागपुर/विरासत का शहर
नोट :- अंग्रेज द्वारा बसाया गया शहर ब्यावर (एरिक डिन्कसन)
अंग्रेज द्वारा निर्मित दुर्ग – टॉडगढ दुर्ग ब्यावर, कर्नल टॉड द्वारा निर्मित
- झालरापाटन :- घंटियों का शहर, बिन्दौरी नृत्य, ढोला मारू नृत्य, नवलखा दुर्ग (पृथ्वीसिंह द्वारा निर्मित)
- मीठे साहब का उर्स/संत हमीमूद्दीन का उर्स :- गागरोण दुर्ग
- गोमती सागर पशु मेला :- झालरापाटन – वैशाख पूर्णिमा , मालवी नस्ल के लिए प्रसिद्ध (गाय की), यह हाड़ौती प्रदेश का सबसे बड़ा पशु मेला है।
- चन्द्रभागा पशु मेला:- झालरापाटन– कार्तिक पूर्णिमा इस मेले को हाड़ौती का सुरंगा मेला (अक्टुबर नवम्बर) भी कहते हैं।
शीतलेश्वर महादेव मंदिर:- झालरापाटन
- 689 ई. का प्रथम तिथि युक्त मंदिर
- उपनाम- चन्द्रमौली मंदिर
- गुप्तकालीन शिव मंदिर
- निर्माण- सामन्त वाप्पक द्वारा
- फर्ग्युसन ने इसे हिन्दू मंदिरो में सबसे प्राचीन बताया।
सात सहेलियों का मंदिर/पदमनाभ मंदिर/सूर्य मंदिर:-
- कर्नल टॉड ने इसे चारभुजा मंदिर कहा।
- इस मंदिर में भगवान सूर्य घुटनों तक जुते पहने हुए है। कच्छपघात शैली में यह मंदिर बना है। नागर शैली से मिलती जुलती है।
कौलवी की गुफाएँ:-
- डग, हथियागौड़, 7 वीं शताब्दी की बौद्ध कालीन गुफाएँ हैं। यहां पर नागेश्वर महादेव मंदिर स्थित है।
- उपनाम :– राजस्थान का एलोरा
शांतिनाथ जैन मंदिर:- झालरापाटन
- काले रंग की जैन तीर्थकर शांतिनाथ की प्रतिमा
- कच्छपात शैली में बना मंदिर
चांदखेड़ी जैन मंदिर :- खानपुर (झालावाड़)
■ बघेरवाल जैन व्यापारी ने बनाया।
■ प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ को समर्पित
नोट – आदिनाथ को समर्पित अन्य मंदिर
- रणकपुर के जैन मंदिर- पाली
- विमलशाह मंदिर- माउण्ट आबू
- जैन कीर्तिस्तम्भ- चित्तौड़ दुर्ग
- केसरियानाथ मंदिर- धुलैव
- सोनी जी की नसियाँ अजमेर
■ गढ़ भवन पैलेस – 1836 ई. में झाला राजा मदनसिंह द्वारा निर्मित।
■ भवानी नाट्यशालाा – 1921 ई. में भवानीसिंह द्वारा पारसी ओपेरा शैली में निर्मित
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